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सारे जहाँ से अच्छा, था हिन्दोस्तां हमारा,
पर भ्रष्टाचारियों ने, इसे गर्त में डुबाया,
हम भी तो कम नहीं हैं, कर्तव्य अपने भूले,
चुप रह के भ्रष्टता को, हमने ही खुद बढ़ाया।
सारे जहाँ से अच्छा, था हिन्दोस्तां हमारा!

हम उन की ज्यात्तियों को, देते रहे बढ़ावा,
बस आँखमूँद कर ही, दिया वोट का चढ़ावा,
हमसे ही ले के शक्ति, किया हमसे ही छलावा,
फिर क्यूँ उन्हें दी सत्ता, जब वादा ना निभाया?
इन देशद्रोहियों को हमने, दमखम न कुछ दिखाया!

जो देश के हुए ना, वह अपने क्या बनेंगे,
अब खून के भी रिश्ते, सगे खून से सनेंगे,
वे अन्धे, गूंगे, बहरे, ना दिल की कुछ सुनेंगे,
यदि अब भी चुप रहे तो, कल अपने सिर धुनेंगे।
जो था धनाढ्य भारत, कंगाल कर दिखाया!

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