सुख, मृगतृष्णा, और जीवन है, मरुथल, रेत, बबूल,
यहीं स्वर्ग, सब सुख सागर, अनुपम, सुरभित फूल,
सोच समझ कर चुन सकते हो, जो भी तुम्हें कबूल !
कहीं भूल वश, उठा ना लेना, फूल छोड़ कर शूल !!
‘खुश रहना या दुख में रहना’, है इंसा के वश में,
लेकिन हम सब जीते हैं, सिर्फ इसी दहशत में –
‘न जाने क्या कहेगी दुनियां’, सबकी सोच यही है,
इसीलिए स्व खुशियों से, दुनियां अनजान रही है ।
सर्वोपरि अपने सुख को रख, जग की बातें भूल !
कहीं भूल वश, उठा ना लेना, फूल छोड़ कर शूल !!
जब कर्म अनैतिक,असामाजिक, नहीं कभी तू करता,
तब क्यूँ, जग वालों की बातों से, हर पल रहता डरता,
हम ने देखा इस दुनियां का, है हर व्यक्ति आलोचक,
"दोषपूर्ण जग सोच" सभी का, पर अपना है रोचक ।
खुद में रह मशगूल, डाल कर जग वालों पर धूल !
कहीं भूल वश, उठा ना लेना, फूल छोड़ कर शूल !!
सामर्थ्य जुटा, हालात बनाले, अपने ही अनुकूल,
वरना जीना सीख ले उस में, जो है तेरे प्रतिकूल,
हुनर सीखकर यह जीने का,सदां रहो खुश, ‘कूल’,
वरना दुख के दलदल होंगे, कदम, कदम पगशूल ।
यह गुर रामवाण हर दुख का, समझो नहीं फ़िज़ूल !
कहीं भूल वश, उठा ना लेना, फूल छोड़ कर शूल !!
सुख, मृगतृष्णा, और जीवन है, मरुथल, रेत, बबूल,
यहीं स्वर्ग, सब सुख सागर, अनुपम, सुरभित फूल,
सोच समझ कर चुन सकते हो, जो भी तुम्हें कबूल !
कहीं भूल वश, उठा ना लेना, फूल छोड़ कर शूल !!