उन आँखों में आज नमी है
जिनमें मैंने मेरी सफ़लता के सपने सजते देखे हैं
वो होंठ आज थार्थरा रहे हैं
जिनपे मेरे नाम की शिकायत रहती थी
वो आवाज़ आज टूट रही है
जिसमें आजतक सिर्फ़ आत्मविश्वाश और हौसले को सुना है
वह देहलीज़ के उस ओर सिर झुकाए खड़ी हैं
जिसका सिर मैंने सिर्फ़ मंदिर में झुकते देखा है
और मैं
मैं देहलीज़ के इस पार खड़ी हूँ
आँखों में सपने
और
हाथों में अपना बस्ता लिए
आँखें नम होना तो लाज़मी है
वो जिसने कभी मुझे अपने आँचल से दूर नहीं होने दिया
जबसे होश संभाला हैं
उसने कभी मुझे अपनी गोद मैं तो नहीं सुलाया
लेकिन मुझसे 2 दिन दूर रहने पर उसे ज्वर जकड़ लेता था
और वो जो मेरे लिए सबसे लडी
शायद खुदसे भी
आज
आज अपनी उस बहादुर माँ को
टूटते देख रही हूँ
मग़र
हिम्मत तो वो आज भी दिखा रही है
मुझे खुदसे 4000 कोस दूर जो भेज रही है
किसी और की सेवा करने को
उसकी झुकी पलकों पर कुछ देर बाद मेरी नज़र पड़ी
मगर
उनसे कुछ कह पाने का हौसला और शब्द
दोनों ही नहीं हैं मेरे पास
शायद माँ चाहती हैं कि मैं उन्हें थाम लूँ
मगर
आज अपनी दूसरी माँ की सेवा का समय आया है
दिल में जन्म देने वाली का हाथ छूटने का शोक अवश्य है
लेकिन
आज मैं उसे थाम नहीं पाऊँगी
आज माँ भारती ने बुलाया है
माँ को अगली छुट्टी पर माऊँगी