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यूं बैठे-बिठाए अकेले
खुदको निहारू मैं
शीशे से बातें करू
खुदको तोड़कर फिर,
खुदको जोडू मैं ।

एक खुले से पिंजरे में
खुदको बांधे रखु मैं
बसा आसमां को यादों में
सपनों में उदू मैं ।

दुनियां से लफ्ज़ बदलू
पर अपनो को दूर करू मैं
कई दोस्त हो चाहे फिर भी
अंजानो से दिल बाटु मैं।

रिश्तों का बंधन से, 
घुंगरू में तपदील होना
खुदको आवाज समझूं मैं
किसी और ने लिखी कहानी में
खुदको ना-जरूरी किरदार की तरह जिऊ मैं ।।

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