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“मौत“ इस पे लोग बात नहीं करते है और न करने देते है.... क्योकि वे डरते है की अगर कही “मौत” उनपे आ गई तो उनके सारे अरमान , ख्वोहिश , और परिवार से उन्हें दूर कर देगी|

“मौत” इसके कई नाम है :- अंत , स्वर्गवास , मरण , मृत्यु , देहांत ,देह से मुक्ति ,और न जाने क्या-क्या |

पर इसके चाहे कितने ही नाम क्यों न हो ,पर लोग इस एक ही सूरत में देखते है जो उनके सपनो में आता है और उसे लोग दुसरो के सामने कुछ यु व्यक्त करते है :

रंग उसका था काला,
जैसे कोई डरावनी रात्री...
शरीर उसका था विशाल
जैसे लंबी सड़क का है वो यात्री...
हाथो में था उसके एक लम्बा कटार...
चहेरे पर थी उसकी एक भयनाक मुस्कान...

पर लोग है कहते कुछ भी है | लोगो के लिए “मौत” का चेहेरा भी उनके हालत के अनुसार बार-बार बदलता रहता है|

लोग जब बच्चे होते है तो उन्हें कुते में “मौत” नजर आता है | हम , आप और हमारे जैसे लोग जब बच्चे थे ,तो उन्हें भी कुते से डर लगता था |

पर जैसे-जैसे वो बड़े होते गए उन्हें “मौत” किसी और सूरत में नजर आने लगती है |

एक विद्याथी के कम अंक आने पर उन्हें अपने माँ-बाप और शिक्षक के सूरत में “मौत” नजर आने लगती है |

अगर किसी होटल में खाना लहाने जाए और पता चले की बटुआ घर पे ही भूल गए तो होटल के मालिक की सूरत में “मौत” नजर आने लगती है |

गाडी सवार चालक बिना हेलमेट के हो और अगर ट्रैफिक पुलिस पकड़ ले तो उन्हें पुलिस की सूरत में “मौत” नजर आने लगती है |

पर “मौत” इन सब हालतों में कुछ वक्त के लिए होता है , पर “मौत” की एक ऐसी सूरत जो सबसे घातक होती है

जब किसी आशिक की मेहबूबा उससे जुदा हो जाये तो उसे जिन्दगी की सूरत में “मौत” नजर आने लगती है |

उस आशिक का हाल कुछ यु हो जाता है :

वो ढूढ़ रहे थे हमें शायद
उन्हें हमारी तलाश थी...
पर जहाँ वो खड़े थे
वही दफन हमारी लाश थी...

आशिक को फिर हर जगह अपनी “मौत” ही दिखती है | उसका हाल जिंदा लाश की तरह हो जाता है |

फिर उसके साथ “जिन्दगी” और “मौत” खेल खेलती है | वह चाहता है की “जिन्दगी” उससे दूर चली जाए और “मौत” गले लगाये, पर इसका उल्टा होता है | “जिन्दगी” गले लगाने के लिए बेकरार रहती है और “मौत” छुप जाती है उसके आँसूओ के बीच |

“मौत” का डर तो हर किसी को लगा रहता है | लेकिन उस व्यक्ति को ज्यादा होता रहता है , जो हॉस्पिटल के ICU में अपने जिन्दगी के चंद सासों को गिन रहा है | उस व्यक्ति को अपनी चिंता से ज्यादा अपने पास बठी उस औरत की होती है जो उसके जीवन की साथी है ,क्युकी उस व्यक्ति के बाद उसका कोई अपना नहीं होगा | वो अपनी पत्नी का हाथ पकड़ के कहता है :

युही पलके गिरने मत दो ....
डर लगता है अंधेरो से |
तुम साथ युही अब बैठी रहो
बस देखना है तुम्हे युही कुछ लम्हों तक |
बस अब कुछ कहना नहीं तेरी प्यारी बातो को
बस बैठी रहो उन लम्हों तक;
जब तक थक न जाए आहे आँखों की
जब तक थम न जाए
ये फीकी-फीकी हवाए सासों की....
युही पलके गिरने मत दो
डर लगता है अंधेरो से
बस साथ युही अब बैठी रहो

“मौत” एक ऐसा सत्य है जो जानता सब है लेकिन स्वीकार कोई नहीं करना चाहता है |

लोग सोचते है की एक दिन ऐसे ही “मौत” आया जाएगी ,लेकिन ऐसा नहीं होता है |

हिन्दू पुराणों में इसका सत्य मिलता है | शिव पुराण में कहा जाता है की एक बार माता पार्वती महादेव से पूछते है की किसी की “मौत” और नजदीक हो तो उसे क्या लक्षण दिखता है....

महादेव कहते है की :- अगर किसी मनुष्य की “मौत” नजदीक है तो उसका शरीर पीला पड़ जाता है और माथे पर लाल दाग हो जाता है |

इसके बाद महादेव ने ये भी कहा की :- अगर किसी मनुष्य के आस-पास नीली मक्खी घुमने लगे और चील ,बाज , और कौआ उसके सिर बेठने लगे पर तो समझ लेना चाहिए की उसकी “मौत” एक महीने में हो जाएगी |

कुरान में भी कहा जाता है की किसी मनुष्य की “मौत” जब आनी होती है तो “मौत” उस व्यक्ति को दिन में तीन बार देखता है और समय होने पर उसे अपने साथ ले जाता है | जाने वक्त मनुष्य की आत्म दरवाज के चोखट पड़कर रोता है और नहीं जाना चाहता है लेकिन “मौत” से अपने साथ ले ही जाता है |

“मौत” एक ऐसी पहेली है जिसे समझ कर भी समझ नहीं पाते है |

अगर “मौत” को मेरी नजर से देखा जाये तो ये एक ऐसा नशा है जिसे लोग को एक बार करना जरुर होता है | इसलिए ये जिन्दगी जो हमें मिली है उसके हर एक लम्हे को खुल कर जीना चाहिए |

कुछ भी सोच कर अपने जिन्दगी के लम्हे हो बर्बाद नहीं करना चाहिए | उसे जो मकसद मिला है उसे हमें बस पूरा करना चाहिए | आप किसी के बारे में ये मत सोचिये की वो क्या सोचेगा आपके बारे में इसी पर मैंने कुछ लाइन लिखी है...

सारी दुनिया के लिए मैं झूठा
तुम तो मुझे जान रहे हो न ?
क्या मेरा ? कौन मेरा ? किसका मैं ?
तुम तो मुझे अपना मान रही हो न ?
मैं बिलकुल शांत ,एकांत
चल रहा अब इस भीड़ से ,
कोई जान मुझे या न जाने
जिन्दगी तुम तो मुझे पहचान रहे हो न ?

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