Inflation and how does it happen

जब डिमांड व सप्लाई में गैप होता है यानी मांग एवं आपूर्ति के बीच बैलेंस नहीं होता तो वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. कीमतों में इस इजाफे को मुद्रास्फीति(Inflation) कहते हैं. चूंकि इस स्थिति में वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक समयावधि में लगातार बढ़ती जाती हैं और मनी की वैल्यू कम हो जाती है. इससे देश की इकोनॉमी पर नेगेटिव असर पड़ता है.

क्या इन्फ्लेशन बुरी चीज है?

इन्फ्लेशन बुरी चीज भी नहीं है लेकिन जब ये अनियंत्रित हो जाती है तब अर्थव्यवस्था के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है. इसलिए सरकार और केंद्रीय बैंक अपनी नीतियों के जरिए इसे हद से ज्यादा या कम नहीं होने देते. हां कुछ हद तक ये आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त है. इसकी सीमित मात्रा बहुत जरूरी है, नहीं तो लोग कारोबार करने में दिलचस्पी नहीं लेंगे. आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक 4 फीसदी से नीचे का इन्फ्लेशन लेवल ठीक माना जाता है.

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आपको बता दें कि महंगाई और महंगाई दर, दोनों सामन से लगते है लेकिन इसका कॉन्सेप्ट थोड़ा सा अलग है. महंगाई किसी वस्तु और सेवा की कीमत में समय के साथ होने वाली वृद्धि को कहते हैं. वहीं जब महंगाई को किसी महीने या साल के सापेक्ष प्रतिशत में मापते हैं तो वो महंगाई दर कहा जाता है. बेहतर समझ के लिए आप इस उदाहरण पर गौर करें, यदि कोई चीज साल भर पहले 100 रुपये में मिल रही थी लेकिन अब 105 रुपये में मिल रही है तो इस वस्तु के लिए वार्षिक महंगाई दर पांच फीसदी कही जाएगी.

इन्फ्लेशन की माप कई प्रकार से किया जाता है, जिसमें निम्न प्रमुख है:

1. थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index—WPI)

2. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index—CPI)

3. राष्ट्रीय आय विचलन (National Income Deflation—NID)

4. थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index—WPI)

हालांकि इन सभी तरीकों से इन्फ्लेशन को मापा जाता है लेकिन थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का इस्तेमाल पूरी दुनिया में सबसे अधिक किया जाता है. भारत में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO), सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) जारी करता है, जिसके आधार पर महंगाई की दर यानी इन्फ्लेशन रेट को मापा जाता है.

सांख्यिकी विभाग में सीएसओ के अलावा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) भी शामिल है. डेटा इकट्ठा करने का काम एनएसएसओ ही करता है. वह शहरों में अपनी फील्ड ऑपरेशन डि​वीजन और 1,200 चुनिंदा गांवों में डाक विभाग से हर महीने निश्चित वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों का संकलन करता है. उसके अधिकारी बाजार जाकर अलग-अलग चीजों की कीमतों का मिलान भी करते हैं ताकि आंकड़ों में गलती की गुंजाइश न रहे.

देश की खुदरा और थोक महंगाई को मापने वाले इन दोनों सूचकांकों के आंकड़े हर महीने जारी होते हैं. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) हर महीने की 12 तारीख को सीएसओ जारी करता है. सीएसओ हर महीने सीपीआई के आंकड़ों को दो हिस्सों में बांटकर प्रकाशित करता है. पहला सामान्य और दूसरा खाद्य (सीएफपीआई) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक. ये दोनों ही सूचकांक तीन खंडों शहरी, ग्रामीण और संयुक्त नाम के वर्गों में बंटे होते हैं. सीएसओ इसके अलावा राज्यवार सामान्य सीपीआई का आंकड़ा भी प्रकाशित करता है. इन आंकड़ों को कई भागों में तोड़कर पेश करने का उद्देश्य सिर्फ यह होता है कि महंगाई की तस्वीर ज्यादा से ज्यादा साफ हो.

गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अप्रैल 2014 से अपनी मॉनिटरी पॉलिसी का मुख्य निर्धारक सीपीआई को ही बना लिया है. वह इन्हीं आंकड़ों के आधार पर तय करता है कि ब्याज दरों में बदलाव लाया जाए या नहीं. दूसरी ओर हर छह महीने में घोषित होने वाले महंगाई भत्ते का निर्धारण सीपीआई के आंकड़ों से ही होता है.

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