वर्तमान कविता " आधुनिक परवरिश के दुष्प्रभाव " उसी का एक्सटेंशन है।
नवपीढ़ी में उठती जिज्ञासाओं को उजागर करती हुई, यह कविता " आधुनिक परवरिश के दुष्प्रभाव " आपको इस में उठाये कुछ कटु प्रश्नों का औचित्य और इस पर सार्थक चिन्तन हेतु आपको झकझोर देगी। मेरा आप से विनम्र अनुरोध है एक बार ऊपर दिए लिंक पर पूरी कविता को पढ़ने के साथ इस कविता को अवश्य पढ़ें जो आपको भारतीय नवपीढ़ी की मानसिक उथल पुथल को समझने में सहायक होगी और साथ ही समाज में बढ़ते उन्मुक्त आचरण के प्रति एक सकारात्मक चेतना जागृत करने की आवश्यकता के लिए के लिए प्रेरित भी कर सकती है।
दूध पिलाया नहीं स्वयं का, कर्ज तुम्हारा मुझ पर क्या?
भूख मिटाई थी स्वतन की,अहसान तुम्हारा मुझपे क्या?
आज का मानव कुत्तों को भी, हर सुख सुविधा देता है,
मुझे एक पालतू कुत्ते जैसा, तुमने समझ लिया है क्या?
दूध पिलाया नहीं स्वयं का, कर्ज तुम्हारा मुझ पर क्या?
सौंदर्यरूप कायम रखने, चीजें भूली सभी कुदरती,
वात्सल्य प्रेम हुआ छलावा, सर्वोपरि हुई खूबसूरती,
कोख छीनी, दूध छीना, फिर भी तुर्रा, प्यार करती,
अब आधुनिक ये माँ हमारी, कैसे कैसे ढोंग रचती।
अपनी सुंदरता से ज्यादा, हम पे ध्यान दिया है क्या?
तुम कहते हो जन्म दिया है, पर मुझको विश्वास नहीं,
यदि प्रमाण है कोई तुमपर, तो दिखलाओ मुझे अभी,
दूध से मुझ को दूर रखा, क्यूँ, बिगड़े ना सुन्दर काया?
‘सरोगेट मदर’ खरीदी, क्या देकर धन, दौलत, माया?
ये सुंदरता, आधुनिक जुनून की, अंधी दौड़ नहीं है क्या?
चलो मान भी लेता जन्म दिया, और मुझे पाला पोसा,
सर्वोत्तम स्कूल में भेजा, दे कर मन चाहा, नित टोसा,
स्वादिष्ट भोजन, सुन्दर कपडे, दिए खेल, खिलोने भी,
ये सारे माँ बाप भी करते, क्या कुछ किया अनोखा भी?
कहो तुम्हारी ये सब बातें, बांध गले लटका लूँ क्या?
कहो तुम्हारे अहसानों के, बोझ तले दब जाऊं क्या?
बदले में, बचपन से ले कर, बहुत किया है मैंने भी,
जो महसूस किया है मैंने, क्या कुछ किया तुमने भी,
हाथ पॉव को फेंक फेंक के, तुमको खूब रिझाता था,
हर पल तुमको खुशियां दे, मैं थक कर सो जाता था।
सत्य बताना, मुझसे ज्यादा, कोई ख़ुशी मिली है क्या?
तुम ने मुझ को डांटा भी था, तुम ने मुझको मारा भी,
था छोटा मासूम सा बच्चा, था और ना कोई चारा भी,
हमें हमेशा बच्चा समझा, पर तुम ने तो मस्ती छानी,
हर पल अंकुश में रखते थे, कब करने दी मनमानी?
ऐसे कितने जुल्म ढाये हैं, दुनियां को बतला दूँ क्या?
मासूमों पर अंकुश रखना, अत्याचार नहीं है क्या?
खैर चलो छोडो ये बातें, अब क्या इनसे लेना देना,
पूज्यनीय माँ बाप हमारे,अब छोडो नित ताने देना,
ब्रेनवाश करने की खातिर, क्यूँ लगे हो रोने धोने में,
ब्लैक मेल अब करना छोडो, जा कर बैठो कोने में।
कंप्यूटर युग के बच्चों को, लल्लू समझ लिया है क्या?
राग न छेड़ो संस्कार के, हम बेहतर कर्तव्य निभाते हैं,
क्या क्या हम ने इन्हें दिया है, आइये, तुम्हें दिखाते हैं,
हर पल, हर उत्सव के फोटो, लैपटॉप में ‘सेव्ड’ रखे हैं,
हमें ऐसे कोई भी प्रमाण तक, नहीं आपके पास दिखे हैं।
‘आउट डेटेड’ मात पिता हो, बने आधुनिक फिरते क्या?
अम्मा बाबा के प्रति मैंने, व्यवहार तुम्हारा देखा है,
मेरे भावुक इस हृदय पर, हर पल पल का लेखा है,
कैसे उनका दिल तोड़ कर, वृद्धाश्रम भिजवाया था,
मैं बेवस, वह दृश्य देखकर, छुपके कितना रोया था।
अब बड़े बड़े उपदेश सुनाते, शर्म नहीं आती है क्या?
उन कर्मों का कच्चा चिट्ठा, सब के आगे खोलूं क्या?
कौन जैविक मात पिता हैं, हम क्या जानें, तुम्हीं कहो,
कोख में रखने वाली को भी, शायद इसका पता न हो,
उन्मुक्त यौन आचरण पर तो, ये निश्चित प्रश्न उठेंगे ना,
चुप हूँ क्योंकि, सत्य वचन ये मेरे, अच्छे नहीं लगेंगे ना।
सच बोलोगे या डी एन ए टेस्ट कहीं करवा लें क्या?
कैसे सोच लिया यह तुमने, मैं भी तुम से प्यार करूंगा,
किस हक़ से मात पिता हो, जो आदर सत्कार करूंगा,
नहीं दूध का कर्ज तुम्हारा, और नहीं खून का रिश्ता है,
सिर्फ वासना जनित हूँ कीड़ा, अभागा प्रेम फरिश्ता है।
नाम मात्र के मात पिता के, मुख में अग्नि दूंगा क्या?
अपवित्र अपने जीवन पर, आत्मग्लानि न होगी क्या?
सोच रहे होगे, क्यूँ लाये हम, जग में इस नालायक को,
कितना बद्तमीज, मुंहफट, बना आज खलनायक जो,
बात बड़ों से कैसे करते, तुम को सबक सिखाऊं क्या?
छोडो मुझे धमकाना, नौ सौ ग्यारह अभी मिलाऊं क्या?
कर्मों का फल निश्चित मिलता, गीता नहीं पढ़ी है क्या?
''जैसी करनी, वैसी भरनी'', यह सच नहीं पता है क्या?
मैंने नौ सौ ग्यारह अगर मिलाया, हवा जेल की खाओगे,
फिर हमको धमकाने की गलती, कभी नहीं दोहराओगे,
हम तो हैं अमरीका के बच्चे, उस पिछड़े भारत के तुम,
अपनी हद में रहना सीखो, वरना जीवन भर पछताओगे।
अब भी हम से, पंगा लेने की, मन में सोच रहे हो क्या?
( 911 is the emergency number for Canada, the United States, and most of North America.)