Jaimal and Kalla Rathore

शौर्य-पराक्रम के जीवंत दस्तावेज ऐसे महावीर योद्धाओं को कोटि-कोटि नमन, जिन्होंने धर्मयुद्ध में भारत मां का सर ऊंचा रखा और गौरवशाली इतिहास का सृजन किया. इन महावीरों की बलिदान को देश कभी नहीं भुला पाएंगी. ऐसे ही एक शूरवीर गाथा रची गई 24 फरवरी 1568 ई. को, जब वीर कल्ला राठौड़, वीर जयमल राठौड़, रावत साईंदास जी चुंडावत समेत अनेक हिन्दू राजपूतों ने चित्तौड़ दुर्ग की दीवारों को शत्रुओं के लहू से लाल कर दिया. 

मुगल बादशाह अकबर ने अपनी जीवनकाल में कभी ऐसी लड़ाई नहीं देखी थी. युद्ध में अकबर इन वीरों को देखकर कांप उठा था. जब 1567 में अकबर ने चित्तौड़ का घेरा डाला था और पूरे 6 महीने बीतने पर भी उसे कोई सफलता नहीं मिली. तब अकबर ने जयमल को टोडरमल के माध्यम से अपने पाले में करने की चाल चली, लेकिन वो भी असफल हुई. फिर उसके बाद अकबर ने बारूदी सुरंगो से किले की दीवारों को क्षतिग्रस्त कर दिया. ताकि वे हार मानकर अकबर की अधिनता स्वीकार कर ले, लेकिन चितौड़ के वीर योद्धाओं ने लहू की आखिरी कतरे तक लड़ते रहें.

इस निर्णायक युद्ध में जयमल जी राठोड़ के घुटने पर चोट लगने के कारण वे अपने भतीजे कल्ला जी राठौड़ के कन्धे पर बैठ कर युद्ध करने आये. इनके चतुर्भुज स्वरूप ने मुग़लो पर कहर बरपा दिया. यह देख अकबर भी हतप्रभ रह गया. उन्हें रोकने का भरसक प्रयास किया पर सब व्यर्थ साबित हुआ. अंत में इनका बल क्षीण करने के लिए इनके ऊपर गौ मांस और रक्त फेंका गया. इसका लाभ उठा मुगलों ने कायरता की सारी हदे पार करते हुए पीछे से वार कर जयमल जी और कल्ला जी के मस्तक काट दिए.

कल्ला जी का सिर कटने के बाद भी धड़ लड़ता रहा. अनेक मुग़लो को मार कर वे वीरगति को प्राप्त हो गए. ऐसी मान्यता है कि कल्ला जी का धड़ अपने ठिकाने रनेला पहुंचकर शान्त हुआ. पत्ता चूंडावत की मां सज्जन बाई सोलांकिनी व दूसरी पत्नी जीवा बाई सोलांकिनी सैनिक वेश धारण कर युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुई. रामपोल पर युद्ध करते हुए पत्ता चूंडावत ने मुगल सेना को अत्यधिक हानि पहुंचाई.

सैंकड़ो मुग़लो को ढेर कर युद्ध करते हुए वीर पत्ता अकबर के मदमस्त हाथी की चपेट में आकर वीरगति को प्राप्त हुए. भारत माता की रक्षा में ना जाने ऐसे कितने बलिदानियों ने उस दिन अपने सम्पूर्ण परिवार का सर्वस्व अर्पण कर दिया. यहां की मिट्टी का कण-कण बलिदान की गाथा गाता है. 

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