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एपिसोड-1: बिहार के बाहुबलियों की इनसाइड स्टोरी, लंगट सिंह कॉलेज बना वर्चस्व का अड्डा

मिनी नरेश ने कैंपस में अपना एकाधिकार कायम कर लिया था. उसने कई हॉस्टल और डिपार्टमेंट का ठेका भी ले लिया था. जिससे उसे मोटी कमाई भी हो रही थी. ठेकेदारी एवं वर्चस्व के बीच में कोई आड़े आता तो नरेशा उसे हमेशा के लिए शांत कर देता था और वर्चस्व बनाने के इसी होड़ में मिनी नरेश ने साल 1983 में ठेकेदार रामानंद सिंह की मर्डर कर दी. ठेकेदार रामानंद सिंह की मौत ने उत्तर बिहार के फिजा में दहशत का माहौल कायम कर दिया. और धीरे-धीरे मिनी नरेश की तूती बोलने लगी. लेकिन फिल्म अभी पूरी नहीं हुई थी. ये तो बस क्लाईमैक्स था...कहानी अभी बाकी है दोस्त!

इस समय ठेकेदारी एवं कैंपस पर कब्जे के लिए भूमिहार दो गुटों में बंटे थे. एक गुट मुजफ्फरपुर का था तो दूसरा बेगूसराय का. तब बेगूसराय के भूमिहार डॉन अशोक सम्राट का हाथ मिनी नरेश पर हुआ करता था. अशोक सम्राट मिनी नरेश के मार्फत ठेकेदारी का कारोबार करता था. वहीं मोतिहारी से मुजफ्फरपुर आए चंदेश्वर सिंह ने भी बतौर बाहुबली अपनी पहचान कायम कर ली थी. साल 1983 में उसने छाता चौक पर वीरेंद्र सिंह की हत्या कर खुद को मुजफ्फरपुर के डॉन के रूप में नाम दर्ज करवाया. उसके ऊपर हाथ था उत्तर बिहार के दबंग नेता रघुनाथ पांडे का. चंदेश्वर सिंह के नाम से पूरा शहर खौप खाने लगा था. चूंकि ठेकेदारी में सबसे अधिक पैसा था. इसलिए हर कोई इसमें वर्चस्व चाहता था. एक दूसरे पर वर्चस्व कायम करने की होड़ में कत्लेआम मचना शुरू हो गई थी. चुन-चुनकर एक दूसरे के आदमियों को मौत के घाट उतारा जाने लगा. 

अब एक जंगल में दो शेर भला कैसे रह सकते थे? आलम ये था कि एक गुट दूसरे गुट को जड़ से खत्म करने पर आतुर था. अभी तक शार्गिदों की लाश गिराई जा रही थी, लेकिन बादशाह के मौत के बिना एकतरफा वर्चस्व कैसे कायम रह सकता था. इसलिए नौबत यहां तक आ गई कि या तो चंदेश्वर सिंह की मौत होती या फिर मिनी नरेश की. वक्त की सुई यहां पर आकर रूक सी गई थी. जैसे भारी तुफान आने से पहले समुंदर शांत हो जाता है. शहर की आबोहवा किसी अनजाने त्रासदी की ओर इशारा कर रहा था.

बिहार यूनिवर्सिटी कैंपस के पीजी ब्वॉयज हॉस्टल नंबर तीन से अपना गिरोह चला रहे मिनी नरेश ने कैंपस में एकाधिकार जमा लिया था. हाल यह था कि एलएस कॉलेज और यूनिवर्सिटी में मिनी नरेश का ही आदेश चलता था. तकरीबन एक दशक से मिनी नरेश कैंपस पर कब्जा जमाये हुए बैठा था. तब कैंपस में सरस्वती पूजा का जबर्दस्त क्रेज था. सबसे बड़ी और भव्य सरस्वती पूजा हो इसके लिए खूब चंदे जुटाये जाते थे. ऐसी ही भव्य सरस्वती पूजा पीजी हॉस्टल नंबर पांच में होती थी. यह पूजा पूरी तरह मिनी नरेश के संरक्षण में होती थी. 

10 फरवरी 1989 को ठीक सरस्वती पूजा के दिन ही पीजी हॉस्टल नंबर पांच बम और गोलियों के धमाके से थर्रा उठा. हर तरफ से बमों के धमाकों की आवाज गूंज रही थी. चंदेश्वर सिंह और उसके गुर्गों ने मिनी नरेश को संभलने का मौका तक नहीं दिया. सरस्वती पूजा के दिन कैंपस में मिनी नरेश की हत्या कर दी गई. बेगूसराय के राहतपुर निवासी मिनी नरेश की हत्या के बाद कई दिनों तक कैंपस खाली रहा. हॉस्टल विरान हो गए. किसी बड़ी अनहोनी की आशंका में क्लास तक नहीं चले. चंदेश्वर सिंह के अलावा इस हत्याकांड में पहली बार नाम आया छोटन शुक्ला का.

अगले अंक में पढ़िये कि क्या मिनी नरेश की हत्या का बदला लिया गया? आखिर लिया गया तो कब, कैसे और किसने लिया ये बदला? फिर उस बदले के बाद बिहार में बाहुबलियों की स्थिति में क्या बदलाव हुए?

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