दरअसल, रार की वजह ये हैं कि गुजरात के मोटेरा स्थित सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बद़ल कर नरेंद्र मोदी के नाम पर कर दिया है, जिसके भीतर एक छोर का नाम रिलायंस एंड है और दूसरे छोर का अड़ानी एंड. अब पहले से ही कुछ गिने-चुने पूंजीपतियों के साथ सांठगांठ को लेकर घिरी मोदी सरकार पर विपक्ष और हमलावर रुख अख्तियार किए हुए हैं. विपक्ष सरकार को अड़ानी-अंबानी की दुकान बताते रहे है. राहुल गांधी हम दो और हमारे दो के आरोप मढ़ रहे हैं.
राहुल ने हम दो हमारे दो हैशटैग के साथ ट्वीट किया, "सच कितनी खूबसूरती से सामने आता है. नरेंद्र मोदी स्टेडियम-अदाणी छोर-रिलायंस छोर. जय शाह की अध्यक्षता."
विपक्षी पार्टियां ये सवाल उठा रही है कि पटेल के नाम को बदलने की ज़रूरत क्या थी? और मोदी के नाम से किसी स्टेडियम का नाम रखना ही था तो नया स्टेडियम बनाते. नया बनाना तो इनके बूते की बात है नहीं, जो बना है उसको बेचो या नाम बदल दो! विपक्षी पार्टियां बीजेपी पर निशाना साधते हुए ये सवाल कर रही हैं कि क्या ये बदलाव पटेल का अपमान नहीं हैं?
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कल तक जो बीजेपी कांग्रेस को यह कह कर कोसती रही है कि उसने सरदार बल्लभ भाई पटेल के साथ न्याय नहीं किया. ख़ास कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के पहले से ही पटेल को उचित स्थान नहीं देने के मुद्दे पर कांग्रेस पर हमलावर रहे हैं. इसके साथ ही बीजेपी पटेल की विरासत को हथियाना का मंशा भी रखती है. बीजेपी अपने राजनीतिक फ़ायदे के लिए लगातार यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश करती है कि सरदार पटेल आरएसएस और बीजेपी के नज़दीक थे. पर इतिहास के साक्ष्य इसे झूठा साबित करते हैं.
अब उसी बीजेपी ने गुजरात के मोटेरा स्थित सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बद़ल कर नरेंद्र मोदी के नाम पर कर दिया है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का इस बारे में कहना है कि इसके पीछे मोदी की 'लार्जर दैन लाइफ़ इमेज' बनाने की सोच है. लेकिन क्या ऐसा करना सही है? इस पर हाय-तौबा मचा हुआ है. गुजरात के ही कांग्रेस नेता हार्दिक पटेल ने इसको लेकर ट्वीट किया, जिसमे वे बीजेपी पर हमला करते हुए इसे सरदार पटेल के नाम को मिटाने की साजिश क़रार दिया है और कहा है कि इसे देश बर्दाश्त नहीं करेगा.
वहीं विपक्ष के इन आरोपों पर सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने सफाई देते हुए ट्वीट किया "सिर्फ मोटेरा स्टेडियम का नाम बदला गया है, लेकिन कॉम्प्लेक्स का नाम अब भी सरदार पटेल के नाम पर ही है."
एक तो हमारे देश में भ्रष्ट्राचार, परिवारवाद और आत्ममुग्धता को लेकर नेताओं की साख पर पहले से ही काफी बट्टा लगा हुआ हैं. और आये दिन ऐसी गतिविधियों से और उनका नाम खराब होता है. विडंबना ये हैं कि वे काम की जगह नाम को आगे बढ़ाने में विश्वास करते हैं. बल्कि देश की तरक्की के लिए होना ठीक उसके उल्टा चाहिए. अब यह एक देखने वाली बात होगी कि स्टेडियम के नामकरण से नरेंद्र मोदी अपनी आत्ममुग्धता और खुलेआम अड़ानी और अंबानी से अपने संबंधों के आरोपों पर क्या रियक्शन देते हैं?