budget-2021: Finance minister Nirmala Sitharaman

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में सोमवार 1 फरवरी को वित्त वर्ष(Financial Year) 2021-22 के लिए बजट पेश करते हुए प्वाइंट आउट किया कि अगले वित्त वर्ष में BPCL, एअर इंडिया, IDBI Bank, कॉनकोर और SCI के विनिवेश(Disinvestment) पर मुहर लग सकती है. इसके अलावा वित्त मंत्री ने बताया कि LIC आईपीओ अगले वित्त वर्ष में लाने का प्लान है. केंद्र सरकार कुछ CPSE में हिस्सेदारी भी ऑफर फॉर सेल (OFS) के जरिए बेच सकती है. ऐसा करके विनिवेश के जरिये सरकार 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाएगी. 

इसके अलावा भारत में पहली बार सरकारी संपत्ति‍यों की बिक्री शुरू होगी. DIPAM ने बिकने वाली सरकारी संपत्ति‍यों की पहले से सूची बना रखी है. मंत्रालयों से सहमति भी ली जा चुकी है. एयरपोर्ट, सड़कें, बिजली ट्रांसमिशन लाइन और रेलवे के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर को निजी हाथों में देकर पूंजी जुटाने की योजना है.

1991 में जब भारत में आर्थिक सुधार हुए तब ये बात जग जाहिर हो गई कि सरकार के बूते बिजनेस करना नहीं है. लेकिन ये बात न सरकार पचा पाई और न वो देश की जनता को भरोसा दिला सके कि ऐसा करना ही देश के हित में है. यहां तक सरकार की समझ कंफ्यूजन से भरी हुई है कि किस काम को बिजनेस माना जाए और किसे नहीं. यानी पब्लिक सेक्टर यूनिट(पीएसयू) को प्राइवेट हाथों में कैसे दे दिया जाए?

सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकारी कंपनियों के सेल से, या ऐसी किसी भी बिक्री से प्राप्त हुए पैसे का इस्तेमाल क्या होगा? अगर सरकार बजट का घाटा पूरा करने के लिए ही इसका इस्तेमाल करती रही तब तो बड़ी मुसीबत खड़ी होने वाली हैं. क्योंकि घर का सामान बेच-बेचकर कोई घर नहीं चल सकता.

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ऐसे तो एक दिन घर ही दिवालिया होने के कगार पर आ जाएगा. इसलिए ये ज़रूरी है कि सरकार देश को भरोसा दिलाए कि इन कंपनियों की बिक्री से आनेवाली रकम कहां और कैसे इस्तेमाल होगी और किस तरह आगे चलकर ये इकोनॉमी को मजबूती देगी.

लेकिन इन सबसे बड़ी चिंता है ये आशंका कि कहीं इस बहाने अपने खास लोगों को रेवड़ियां बांटने का काम तो नहीं होगा. ये जो कुछ बिकना है कहीं वो सिर्फ़ कुछ गिने-चुने उधोगपतियों का कारोबार बढ़ाने के काम तो नहीं आने वाला?

सिक्के का एक पहलू और है और वो ये जब देश आज़ाद हुआ था, तब बहुत से काम ऐसे थे जो सरकार न करती तो शायद नहीं हो पाते. होते तो किस रूप में होते ये पता नहीं. इस्पात के कारखाने लगाने हों, इंफ्रास्ट्रक्चर के बड़े प्रोजेक्ट तैयार करने हों, रिफ़ाइनरी बनानी हों, बड़े बिजलीघर लगाने हों या फिर बांध बनाने हों. इसी वजह से सरकार ने इन्हें खुद करने की ठानी. यहां तक तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इन उद्योगों को आधुनिक भारत के नए मंदिर बताया.

हो सकता है कि वक्त के साथ अब ये ज़रूरी न रह गया हो. फिर भी इस बात की क्या गारंटी है कि सरकार इन कामों से बाहर होकर जनता का भला कर पाएगी. जिससे ये सुनिश्चित हो कि प्राइवेट कंपनियां मनमानी नहीं करेंगी? टेलिकॉम सेक्टर में सरकार और रेगुलेटर की नाक के नीचे से जिस तरह एक कंपनी ने बाज़ार पर कब्जा किया उसका उदाहरण सबके सामने है.

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