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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली दफा हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनाव ने लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने का काम किया है. इस चुनाव की खास बात यह रही कि इस दौरान किसी भी तरह की हिंसा नहीं हुई. अब डीडीसी के नतीजे सामने आ चुके हैं, जिसमें गुपकार गठबंधन ने कश्मीर घाटी में जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जम्मू क्षेत्र में अपना दबदबा बनाया है. वहीं इस चुनाव में निर्दलीय तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं.

सूबे में पहली बार हुए डीडीसी के चुनाव में जम्मू-कश्मीर की आवाम ने कई धारणाओं को झूठा साबित किया हैं. आतंकियों एवं अलगाववादियों को दरकिनार कर लोगों ने बेखौफ होकर चुनाव प्रक्रियां में भागीदारी की जिससे सूबे में विधानसभा चुनाव का रास्ता भी साफ हुआ है. आठ चरणों में हुए डीडीसी चुनाव 28 नवंबर से शुरू हुए थे. पिछले साल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा रद्द होने और इसके केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद ये पहला चुनाव है. जम्मू और कश्मीर क्षेत्र की 140-140 सीटों पर चुनाव हुए थे. 

प्रदेश से अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद कई राजनीतिक दल कहने लगे थे कि घाटी में कोई भारत का झंडा उठाने वाला नहीं बचेगा. वहीं कुछ ने पहले तो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से ही दूरी का मन बना लिया था, लेकिन जिस तरह से लोगों ने वोट कर के लोकतांत्रिक मूल्यों पर विश्वास जताया है, उससे ये साफ जाहिर होता है कि लोगों के भीतर लोकतंत्र के लिए गहरी आस्था है.

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जम्मू-कश्मीर की 280 सीटों के जिला विकास परिषद सदस्य के चुनाव में स्थानीय पार्टियों के गुपकार गठबंधन को 112 सीटें मिली हैं जबकि बीजेपी 74 सीटों के साथ सिंगल लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरी है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी को 12 सीटों पर जीत मिली है. कांग्रेस 26 सीटें जीतकर तीसरे नंबर पर है जबकि निर्दलीय आश्चर्यजनक रूप से 49 सीटें जीतने में कामयाब रहे हैं. कश्मीर घाटी में स्थानीय पार्टियों के गुपकार गठबधंन ने दबदबा बरकरार रखा है, लेकिन, घाटी में कमल खिलना काफी अहम माना जा रहा है. इस डीडीसी चुनाव से कई राजनीतिक संदेश निकले हैं,

प्रदेश में पंचायती राज मजबूत होगा

केंद्र सरकार ने राज्य में थ्री टीयर पंचायती राज व्यवस्था लागू करने के लिए राज्य के पंचायती राज अधिनियम में संशोधन किया, जिसके बाद जम्मू कश्मीर में जिला विकास परिषदों का गठन हुआ. सीधे शब्दों में कहा जाए तो स्थानीय स्तर पर विकास का सारा काम अब डीडीसी यानी जिला विकास परिषद करेंगी. जम्मू कश्मीर में 20 डीडीसी हैं जिनमें से 10 जम्मू में और 10 कश्मीर में हैं. हर डीडीसी में 14 निर्वाचन क्षेत्र हैं. डीडीसी के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेश में लोग अपने विकास का खाका खुद खींच सकेंगे. इसी विकास की उम्मीद को पूरा करने के इरादे से यहां की जनता ने लोकतंत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस दौरान खराब मौसम, कड़ाके की ठंड भी उनका हौसला नहीं डिगा पाई और अब जिले के ग्रामीण इलाके के विकास की रूप रेखा कोई विधायक और मंत्री नहीं बल्कि जिला परिषद के द्वारा तय की जाएगी.

विधानसभा चुनाव के रास्ते खुलेंगे

जम्मू-कश्मीर में जिला परिषद के चुनाव के नतीजे से साफ हो गया है कि भविष्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने की संभावना बढ़ गई है. बीजेपी और पीडीपी गठबंधन टूटने के बाद से अभी तक चुनाव नहीं हुए हैं और पिछले साल मोदी सरकार ने 370 भी खत्म कर दिया है. इसके बाद से उपराज्यपाल की जिम्मेदारी पर कश्मीर चल रहा है और अब जिस तरह से आवाम ने जिला परिषद के चुनाव में हिस्सा लिया है, उससे साफ है कि जल्द ही राज्य में विधानसभा चुनाव के साथ एक स्थाई सरकार दी जा सकती है.

घाटी में खिला कमल

जम्मू इलाके में बीजेपी का दबदबा पहले से रहा है, लेकिन मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में पार्टी ने पहली बार जीत दर्ज की है. मुस्लिम बहुल इलाके में बीजेपी को तीन सीटों पर जीत हासिल हुई है. बीजेपी श्रीनगर, पुलवामा और बांदीपोरा की सीटों पर जीत का परचम फहराया हैं. ये कश्मीर की सियासत में एक बड़े बदलाव का संकेत है. जम्मू क्षेत्र में बीजेपी ने 10 में से 6 जिलों में बहुमत हासिल किया है.

गुपकर की सियासी स्थिति

इस चुनाव में गुपकार गठबंधन को सबसे ज्यादा 112 सीटें मिली हैं. ऐसे में यह स्पष्ट है कि घाटी की राजनीति से अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के सियासी दबदबे को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. इस चुनाव में यह भी साफ हो गया है जम्मू में भले ही बीजेपी सबसे ज्यादा सीटें जीती है, लेकिन श्रीनगर में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती और कॉन्फ्रेंस नेता फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि डीडीसी चुनाव परिणाम ने स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर ने गुपकार के पक्ष में वोट दिया है और अनुच्छेद 370 हटाने के केन्द्र के फैसले को खारिज किया.

निदर्लीय बने किंगमेकर

इस चुनाव में निर्दलीय तीसरी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं. ऐसे में जिला विकास परिषद के अध्यक्ष के चुनाव में निर्दलीय कई जिलों में किंगमेकर की भूमिका में हैं. यानी निर्दलीयों को साथ लिए बिना कोई भी अपना जिला प्रमुख नहीं बना सकेंगे. हालांकि, बीजेपी का दावा है कि सभी निर्दलीय बीजेपी के साथ हैं जिस पर नेशनल कॉंफ्रेंस ने कहा कि ऐसा कह कर बीजेपी नेताओं की खरीद फरोख्त करना चाह रही है. निर्दलीयों में उन नेताओं की संख्या अधिक है जो अलग-अलग दलों के बागी हैं और उन्हें डीडीसी चुनाव में टिकट नहीं मिले थे.

जनमत का रुख व संदेश

चुनाव के बाद राजनीतिक विश्लेषक यह मान रहे हैं कि मतदाताओं ने किसी दल को नहीं बल्कि स्थानीय स्तर पर उतारे गए नेताओं को वोट करने का काम किया है. लोगों ने स्थानीय मुद्दों और स्थानीय चेहरे पर वोट किया है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने किसी पार्टी या किसी गठबंधन को वोट किया है. पर, सूबे के सियासत की पूरी तस्वीर आगामी विधानसभा चुनाव में ही स्पष्ट हो पाएगी.

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