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वो 14 जून का मनहूस दिन था, जब ये ख़बर सुनने को मिली कि सुशांत सिंह राजपूत अब इस दुनिया में नहीं रहें. यह खबर सुनना बेहद शॉकिंग था. सुशांत सर आपके यूं रुखसत होने से दिल मायूस और आंखें भर आईं. ख़बर सुनने के बाद मन उचाट-सा हो गया. उसी दिन शाम को मित्र डॉ दीपक शौकीन से बातचित हुई. दीपक ने आपके साथ बिताए हुए पल को साझा किया कि आप कितने मिलनसार, हंसमुख स्वभाव वाले और जिंदादिल इंसान थे. आप इतने डाउन टू अर्थ इंसान थे कि जब आप सामने वाले किसी आम इंसान से भी मिलते तो उससे जल्दी घुलमिल जाते थे. उसे इस चीज की भनक तक नहीं लगती कि सामने जो शख्स उससे बातें कर रहा है वो बॉलीवूड का सुपर स्टार हैं.

ऐसे इंसान के बारे में इस तरह की ख़बर भी सुनने को मिलेगी, इसकी उम्मीद तो कतई नहीं थी. पहली दफा तो ये यकीन ही नहीं हुआ कि सच में ऐसा हुआ है. महज 34 साल की उम्र में आपका यूं रूखसत होना दिलो-दिमाग को सुन कर गया. मेरी मन: स्थिति कुछ भी लिखने की नही रही लेकिन आपके इस सुसाइड ने बॉलीवुड की स्याह चेहरे को उजागर कर दिया. सबसे बड़ा सवाल मन में ये उठा कि आखिरकार ऐसी क्या पीड़ा, ऐसी कौन-सी मानसिक विचलन दिमाग में रही होगी कि सुशांत सिंह राजपूत जैसी शख्सियत को सुसाइड करना पड़ा? आपके मौत के बाद धीरे-धीरे इस हादसे के पीछे की सच्चाई सामने आने लगी.

असमय हुई आपकी मौत ने बॉलीवुड में निपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद और खेमेबाजी की कलई खोल कर रख दी. कुछ लोग तर्क देते है कि ऐसा तो सभी जगह है, उसमें बुरा क्या है? मान लिजिए आप फिल्म इंडस्ट्री में पहले से है और अपकी संतान फिल्म में आना चाहे तो क्या आप मना कर देंगे? ऐसे लोगों को मेरा जवाब है नहीं, मना नहीं करेंगे. परंतु किसी टैलेंटेड कलाकार को कोई दूसरा प्रोड्यूसर व डायरेक्टर मौका देना चाहता है, तो उसमें अड़गा क्यों? आप यहां पर गुटबाजी क्यों करते हो? आप उस प्रोड्यूसर को मना क्यों करते हो कि इसे मत लेना? क्या यह टैलेंट का गला घोंटना नहीं है? ऐसी हरकतें बहुत घिनौनी है. यदि फिल्म इंडस्ट्री को डूबने से बचाना है, तो ये सब बंद होना चाहिए. सिर्फ सोशल मीडिया पर सुशांत की श्रद्धांजलि में चंद शब्द लिखकर पल्ला झालने से कुछ नहीं होगा. ऐसा कर देने से उनकी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती.

उनकी मनमोहक मुस्कुराहट के पीछे की उदासी कोई नहीं देख पाया. ये हंसता मुस्कुराता चेहरा सब कुछ छोड़कर दुनिया से रुखसत हो गया. उन्होंने काय पो चे, शुद्ध देसी रोमांस, डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी, पीके, धोनी-अनटोल्ड स्टोरी, केदारनाथ, और छिछोरे जैसी बेहतरीन फिल्में दीं. अपने अभिनय के बल पर उन्होंने वो मुकाम हासिल किया जो आसानी से किसी को नसीब नहीं होता है. सुशांत सिंह ने लंबे स्ट्रगल और जी-तोड़ मेहनत के बाद इंडस्ट्री में अपना अलग मुकाम बनाया था. उन्होंने अपने करियर की शुरूआत एक बैकग्राउंड डासंर के रूप में किया था. तब वे फिल्मफेयर अवार्डस में चौथी पंक्ति में डांस किया करते थे.

उनकी आंखों में एक साल पहले तक हजारों सपने थे. सोशल मीडिया पर पिछले साल सुशांत ने एक लिस्ट अपने फैंस के साथ साझा की थी जिसमें उन्होंने अपने 50 सपनों का जिक्र किया था. न केवल अभिनय में बल्कि वे पढ़ने में बहुत तेज़ थे. उन्होंने भौतिक विज्ञान में राष्ट्रीय ओलंपियाड जीता था. 2003 में दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में दाखिला लिया और उसी साल कई दूसरे इंजीनियिंग कॉलेजों की प्रवेश परीक्षा पास की. अभिनय में कॅरियर बनाने की चाह में सुशांत ने इंजीनियरिंग को अलविदा कह दिया. सुशांत सिंह की आख़री फिल्म दिल बेचारा है, जो 24 जुलाई 2020 को डिजिटल प्लेटफार्म डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ होगी. सुशांत सिंह भले ही अपना भौतिक शरीर त्याग कर चले गए हैं. लेकिन अपनी फिल्मों के ज़रिए सिनेप्रेमियों के बीच हमेशा जिंदा रहेंगे.