बंगाल चुनाव की हॉट सीट नंदीग्राम में कद्दावर भाजपा नेता शुवेंदु अधिकारी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सीधा मुकाबला है. राज्य के सबसे हॉट सीटों में शुमार इस सीट पर दोनों उम्मीदवारों के लिए साख का सवाल बना हुआ है. आपको बता दें कि ममता बनर्जी ने इस बार अपनी पारंपरिक भवानीपुर सीट के बजाए नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जबकि भवानीपुर में उनका घर भी है.
नंदीग्राम सीट चर्चा में क्यों
नंदीग्राम भारत के पश्चिमी बंगाल राज्य के पूर्व मेदिनीपुर जिला का एक ग्रामीण क्षेत्र है. यह क्षेत्र हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के तहत आता है. बता दें कि नंदीग्राम 2007 में चर्चा में तब आया था, जब पश्चिम बंगाल में लेफ्ट फ्रंट की सरकार थी और ये सरकार सलीम ग्रुप को 'स्पेशल इकनॉमिक जोन' नीति के तहत, वहां एक केमिकल हब की स्थापना करने की परमिशन देने का फैसला किया था. सरकार के इस फैसले पर खूब हो-हल्ला मचा. ग्रामीणों ने इस फैसले का जमकर विरोध किया. फिर सरकार की ओर से उनके विरोध को दबाने की कोशिशें की गई थी जिसके परिणामस्वरूप ये विरोध और बड़ा बना गया.
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ग्रामीण लोगों की पुलिस के साथ मुठभेड़ भी हुई जिसमें 14 लोग मारे गए. फिर पूरे देश में पुलिस की इस बर्बरता की आलोचना हुई. कई लेखकों, कलाकारों, कवियों और शिक्षा-शास्त्रियों ने पुलिस फायरिंग का कड़ा विरोध किया. प्रतिरोध के बढ़ते स्वर ने इस घटना को बंगाल की राजनीति का टर्निंग प्वांइट बना दिया जिसने सारे सियासी समीकरण ही पलट दिए.
ममता की स्थिति
ये भी दिलचस्प पहलू है कि ममता आखिर यही से चुनाव क्यों लड़ना चाहती है. पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स की माने तो ममता की छवि एक निर्भीक और जुझारु नेता की रही है. वो बीजेपी या शुभेंदु अधिकारी की चुनौती को दरकिनार नहीं कर सकती थीं. नंदीग्राम से चुनाव लड़ने से फैसले से जनता में उनकी ये छवि मजबूत हुई है. ममता अपने फायरब्रांड नेता की छवि को बरकरार रखना चाहती है. इसलिए ममता अपने बागी नेता सुवेंदु को उन्हीं को इलाके में चुनौती देने की ठानी है.
जबकी कई राजनीतिक रणनीतिकार ममता के इस सीट पर लड़ने की वजह उनकी सियासी सुझ-बूझ व रणनीतिक दूरदृष्टि को बता रहे हैं. इन रणनीतिकारों के मुताबिक ममता एक ओर इस विधान सभा क्षेत्र में 27 फीसदी से भी ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में लाना चाहती हैं. वहीं दूसरी ओर मंच से चंडी पाठ कर उन्होंने हिन्दू मतदाताओं को भी रिझाने की पहल शुरू कर दी हैं.
आपको बता दें कि बंगाल की राजनीति में ममता बनर्जी ने नंदीग्राम आंदोलन के काऱण ही जगह बना पाई थी और 34 साल पुरानी वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ उखाड़ फेंका था. ममता के सामने एक बार फिर खुद को साबित करने की चुनौती है, इसलिए वो खुद को फिर उसी नंदीग्राम से मैदान फतह करना चाहती हैं.
शुवेंदु की स्थिति
1995 में कांग्रेस के साथ पॉलिटिक्स शुरू करने वाले शुवेंदु 2006 में कंथी दक्षिणी से विधान सभा के सदस्य के रूप में टीएमसी से चुने गए. बाद में वह सरकार में परिवहन मंत्री भी बने. फिर 2009 और 2014 में तामलुक निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा में चुने गए. उसके बाद उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए 28 मई 2016 को लोकसभा से इस्तीफा देकर टीएमसी के टिकट पर नंदीग्राम सीट से चुनाव लड़े और 67 प्रतिशत वोट हासिल कर जीत दर्ज की. माना जाता है कि नंदीग्राम में टीएमसी की जीत सुनिश्चित कराने वाले शुभेंदु अधिकारी ही हैं.
सुवेंदु ही वो शख्स है जिन्होंने 2007 में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई और भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी का नेतृत्व किया. इस आंदोलन ने सुवेंदु को बंगाल के एक युवा एवं जुझारू नेता के तौर पर प्रतिष्ठित कर दिया. वहीं पूर्वी मिदनापुर क्षेत्र में सुवेंदी परिवार की राजनीतिक पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है. गाहे-बगाहे शुभेंदु बार-बार इस बात का जिक्र करते रहते हैं कि वो ममता बनर्जी को वहां से नहीं जीतने देंगे और 50 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराएंगे. सुभेंदु के साथ इस बार बीजेपी का पूरा संगठन, पीएम समेत स्टार प्रचारकों की बड़ी फौज और दिग्गज रणनीतिकार हैं.
वर्चस्व की लड़ाई में भविष्य दांव पर
इस सीट पर दोनों उम्मीदवारों में से जो पराजित होगा, निश्चित रूप से उसके सियासी करियर का द एंड हो जाएगा. इसलिए उन्हें अपनी सियासी हैसियत बनाये रखने के लिए इस सीट को जीतना करना करो या मरो की स्थिति बन चुकी है.