Will the west bengal kerala assam and tamil nadu assembly elections 
be a game changer

चुनाव आयोग की ओर से 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही सियासी दंगल शुरू हो चुका है. पश्चिम बंगाल में 8, असम में 3, केरल, पुदुचेरी और तमिलनाडु में एक चरण में चुनाव होंगे. जबकि इन राज्यों के चुनाव के नतीजे 2 मई को एक साथ घोषित किए जाएंगे. इन 5 राज्यों के चुनाव नतीजों से देश में सियासी समीकरण में भी कई बदलाव ला सकते हैं.

पश्चिम बंगाल में एक तरफ टीएमसी और बीजेपी के बीच जोरदार लड़ाई देखने को मिल सकती है तो केरल में वामपंथी दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ेंगे. पुडुचेरी में चुनाव से पहले राष्ट्रपति शासन लगा है. ऐसे में इन राज्यों के चुनाव अहम हैं और सत्ता के समीकरण में बड़े बदलाव का कारण बन सकते हैं. आइए जानते हैं, चुनावों के बाद क्या हो सकते हैं बदलाव...

लेफ्ट यदि केरल हारा तो उसका अस्तित्व खतरे में होगा

देश की राजनीति पर एक लंबे समय तक असरदार होने के बाद देश के चुनावी इतिहास में वामपंथी पार्टियां पहली बार बेहद मुश्किल चुनौती का सामना कर रही हैं. पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल को वामपंथी दलों के गढ़ के तौर पर जाना जाता था. परंतु आज पश्चिम बंगाल में वामपंथी दल मुख्य मुकाबले में नहीं हैं. वहीं त्रिपुरा में वो पहले ही बीजेपी के हाथों सत्ता गंवा चुकी है. ऐसे में केरल ही एक ऐसा राज्य है, जहां लेफ्ट की सरकार है. पिनराई विजयन के चेहरे पर चुनाव लड़ रहे वामपंथी दलों को यदि यहां शिकस्त मिलती है तो फिर वह किसी भी राज्य में सत्ता में नहीं रह जाएंगे.

बीजेपी यदि बंगाल जीती तो भगवा की होगी पूर्वी छोर पर एंट्री

सबसे ज्यादा दिलचस्प मुकाबला पश्चिम बंगाल का है. क्योंकि, बीजेपी ने यहां ममता सरकार के खलाफ मोर्चा खोल रखा है. पिछले 10 साल से टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी यहां की मुख्यमंत्री हैं. 2016 विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211 सीटें मिली थी. जबिक, बीजेपी को तीन सीटों से संतोष करना पड़ा था. अब यदि पश्चिम बंगाल में बीजेपी जीत हासिल करती है तो पहली बार पूर्वी छोर पर भगवा लहराएगा. 2019 के आम चुनाव में बंगाल में 40 पर्सेंट वोट शेयर हासिल कर 18 लोकसभा की सीटें जीतने वाली बीजेपी को इस बार बड़ी उम्मीदें हैं.

क्षेत्रीय दलों की ताकत का लिटमस टेस्ट

देश में जिस तरह से 2014 के बाद बीजेपी का उभार हुआ है. उससे देश में कुछ ही क्षेत्रीय दल हैं, जो उसे टक्कर दे रहे हैं. इन दलों में से एक टीएमसी भी है. यदि पश्चिम बंगाल की सत्ता से टीएमसी बेदखल होती है तो एक मजबूत क्षेत्रीय दल की हैसियत भी उसकी नहीं रहेगी. बीएसपी और एसपी जैसे दलों के कमजोर होने के बाद टीएमसी का कमजोर होना राष्ट्रीय राजनीति के समीकरणों पर असर डालेगा.

वहीं डीएमके ने तमिलनाडु में लोकसभा में बड़ी संख्या में सीटें जीतकर मजबूत स्थिति में आ चुकी है. यदि विधानसभा चुनाव में वह जीत जाती है तो उसका कद राष्ट्रीय राजनीति में भी बढ़ जाएगा.

केरल, तमिलनाडु और असम में दांव पर है कांग्रेस की प्रतिष्ठा

2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को कुल 52 सीटें मिली थीं, जिनमें से आधी सीटें उसने इन्हीं राज्यों में जीती थीं. ऐसे में कांग्रेस को अपनी जमीन बचाने के लिए इन तीनों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करना होगा. तमिलनाडु में कांग्रेस डीएमके के साथ छोटे भाई के रोल में है. केरल में वह यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की मुखिया है. वहीं असम में बीजेपी को 60 सीटें मिली थीं. जबिक, कांग्रेस केवल 26 सीटे ही मिली थीं. यहां पर मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच है. असम में कांग्रेस ने इस चुनाव में पहली बार (AIUDF) के साथ गठबंधन का फैसला लिया है. मुख्य तौर पर मुस्लिमों में आधार रखने वाली AIUDF के साथ उसके गठबंधन की भी परीक्षा होगी.

लिहाजा, इन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है. अब देखना ये है कि 2021 में इन पांच राज्यों में कौन सी पार्टी जीत का परचम लहराती है और किसे शिकस्त मिलती है.

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