News story on farmers protest

सुप्रीम कोर्ट ने तीनों कृषि कानूनों के लागू होने पर रोक लगा दी है. शीर्ष कोर्ट ने सरकार एवं किसान संगठनों के बीच की गतिरोध को समाधान के लिए जिस कमेटी का गठन किया, उसपर ही सवाल उठ रहे है. क्योंकि जिन्हें मामले को सुलझाने कि जिम्मेवारी दी गयी है वो तो पहले से ही किसान आंदोलन के खिलाफ रहे है और सरकार के द्वारा बनाये गए कृषि कानून के सपोर्टर रहे हैं. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमिटी क्या इस मामले में न्याय कर पायेगे? इसपर किसानों से लेकर आम लोगों में संशय कि स्थिति बनी हुई है! चलिये पहले हम आपको कमिटी के मेंबर का परिचय करवा देते है.

1. भूपिंदर सिंह मान(भारतीय किसान यूनियन)

2. अनिल घनवंत(शेतकारी संगठन)

3. अशोक गुलाटी(कृषि अर्थशास्त्री)

4. प्रमोद के. जोशी (अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान)

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फार्मर प्रोटेस्ट के मसले पर क्या बोला SC?

शीर्ष कोर्ट ने चार सदस्यीय कमेटी में भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपिंदर सिंह मान को शामिल किया है. आंदोलन कर रहे किसान संगठन की माने तो भूपिंदर सिंह मान पहले ही कृषि कानूनों का सपोर्ट कर चुके हैं. उनकी समिति ने 14 दिसंबर को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था, ‘आज भारत की कृषि व्‍यवस्‍था को मुक्‍त करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्‍व में जो तीन कानून पारित किए गए हैं हम उन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं.’

शेतकारी संगठन के अनिल घनवंत ने बीते दिनों कहा था कि सरकार किसानों के साथ विचार-विमर्श के बाद कानूनों को लागू और उनमें संशोधन कर सकती है. हालांकि, इन कानूनों को वापस लेने की आवश्यकता नहीं है, जो किसानों के लिए कई अवसर को खोल रही है. शेतकारी संगठन बड़े किसान नेता रहे शरद जोशी ने 1979 में बनाया था. वर्त्तमान में अनिल घनवत इसके अध्यक्ष है और उनका कहना है कि इन कानूनों के आने से गांवों में कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस बनाने में निवेश बढ़ेगा. घनवत ने ये भी कहा था कि अगर दो राज्यों के दबाव में आकर ये कानून वापस ले लिए जाते हैं तो इससे किसानों के लिए खुले बाजार का रास्ता बंद हो जाएगा.

कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी भी तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में रहे हैं. अभी वे इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन (ICRIER) में प्रोफेसर हैं. वे नीति आयोग के तहत प्रधानमंत्री की ओर से बनाई एग्रीकल्चर टास्क फोर्स के मेंबर और कृषि बाजार सुधार पर बने एक्सपर्ट पैनल के अध्यक्ष भी हैं. वे कृषि कानून को किसानों के लिए फायदेमंद बताते रहे हैं. अशोक गुलाटी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि इन तीनों कानून से किसानों को फायदा होगा, लेकिन सरकार यह बताने में कामयाब नहीं रही. उन्होंने कहा था कि किसान और सरकार के बीच संवादहीनता है, जिसे दूर किया जाना चाहिए.

वहीं, साउथ एशिया इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रमोद के. जोशी ने हाल में एक ट्वीट करके कहा था, 'हमें MSP से परे, नई मूल्य नीति पर विचार करने की आवश्यकता है. यह किसानों, उपभोक्ताओं और सरकार के लिए एक जैसा होना चाहिए, एमएसपी को घाटे को पूरा करने के लिए निर्धारित किया गया था. अब हम इसे पार कर चुके हैं और अधिकांश वस्तुओं में सरप्लस हैं. सुझावों का स्वागत है.'

इससे पहले भी उन्होंने 2017 में एक अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसानों के लिए फायदेमंद बताया था. तब कृषि कानून बनाए जा रहे थे. जोशी ने लिखा था कि इन कानूनों से फसलों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव होने पर किसानों को नुकसान नहीं होगा और उनका जोखिम कम होगा.

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शीर्ष अदालत द्वारा गठित कमेटी पर कांग्रेस ने एतराज जताते हुए कहा कि जो पहले ही कानून को सही कह चुके हैं वो न्याय कैसे करेंगे? कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा है कि कमेटी में शामिल चार लोगों ने सार्वजनिक तौर पर पहले से ही निर्णय कर रखा है कि ये काले क़ानून सही हैं और कह दिया है कि किसान भटके हुए हैं.

सुरजेवाला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जब सरकार को फटकार लगाई तो उम्मीद पैदा हुई कि किसानों के साथ न्याय होगा, लेकिन इस समिति को देखकर ऐसी कोई उम्मीद नहीं जगती. उन्होंने ये भी कहा, "हमें नहीं मालूम कि सुप्रीम कोर्ट को इन लोगों के बारे में पहले बताया गया था या नहीं? वैसे, किसान इन कानूनों को लेकर उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे. इनमें से एक सदस्य भूपिन्दर सिंह इन कानूनों के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट गए थे. फिर मामला दायर करने वाला ही समिति में कैसे हो सकता है? इन चारों व्यक्तियों की पृष्ठभूमि की जांच क्यों नहीं की गई?"

कांग्रेस नेता ने दावा किया, ‘‘ये चारों लोग काले कानूनों के पक्षधर हैं. इनकी मौजूदगी वाली समिति से किसानों को न्याय नहीं मिल सकता. इस पर अब पूरे देश को मंथन करने की जरूरत है.’’

वहीं भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी के सभी सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या कानून के समर्थक रहे हैं. अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने ही इन कानून को लाए जाने की सिफारिश की थी. देश का किसान इस फैसले से निराश हैं.

वहीं इस मसले पर कांग्रेस नेता एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ट्वीट में लिखा है, "कांग्रेस पार्टी किसानों के संघर्ष में उनके साथ खड़ी है लेकिन किसान बिलों का समर्थन कर चुके सदस्यों की कमेटी से उन्हें उम्मीद नहीं है. मोदी सरकार को किसानों के धैर्य का इम्तिहान लेने के बजाय तीनों काले कृषि कानून वापस लेने चाहिए."

अब इन तथ्यों पर गौर करके आप खुद इसका अंदाजा लगा सकते हैं कि जब सुप्रिम कोर्ट की ओर से गठित कमेटी के मेंबर ही निष्पक्ष नहीं है तो समस्या का समाधान होगा या फिर उसपर रार बरकरार रहेगा. इस पूरे मामले में किसान खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. वो इस कदर आक्रोशित हैं कि आज बुधवार 13 जनवरी के शाम सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानूनों की प्रतियां जलाईं. 

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