गुरुवार को सुनवाई शुरू होने से पहले ही चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कोर्ट अभी कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा. आज बस किसानों के प्रदर्शन पर सुनवाई होगी. हम पहले हम किसानों के आंदोलन के ज़रिए रोकी गई रोड और उससे नागरिकों के अधिकारों पर होने वाले प्रभाव पर सुनवाई करेंगे. शीर्ष अदालत ने कहा कि किसानों को विरोध प्रदर्शन करने का हक है. नागरिकों को कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने का मौलिक अधिकार है और इसे बाधित करने का सवाल ही नहीं है. लेकिन किसी शहर को ऐसे ब्लॉक नहीं कर सकते.

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केंद्र का पक्ष रखते हुए अटार्नी जनरल केके वेणगोपाल ने दलील रखी कि प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली आने वाले रास्तों को ब्लॉक कर रखा है, जिससे दूध, फल और सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं, जिससे अपूरणीय क्षति हो सकती है. साथ ही उन्होंने कहा कि आंदोलन में शामिल लोग ना मास्क पहने हुए हैं और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर रहे हैं. यही लोग फिर अपने गांवों में जाएंगे तो कोरोना फैलने का खतरा और बढ़ जाएगा. किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते.

इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हम किसानों के प्रदर्शन करने के अधिकार को मानते है और उनके 'राइट टू प्रोटेस्ट' के अधिकार को बाधित नहीं कर सकते है. लेकिन चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने कहा, "हम स्पष्ट करते हैं कि हम कानून के विरोध में मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हैं. इस पर रोक लगाने का कोई सवाल ही नहीं है लेकिन इससे किसी की जान को नुकसान नहीं होना चाहिए.”

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चीफ जस्टिस ने कहा कि हम किसानों की दुर्दशा और उसके कारण सहानुभूति के साथ हैं लेकिन आपको इस बदलने के तरीके को बदलना होगा और आपको इसका हल निकालना होगा. हम सुनिश्चित करेंगे कि वे अपने मामले की पैरवी कर सकें और इसलिए हम समिति गठित करने के बारे में सोच रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि प्रदर्शन कर रहे सभी किसान संगठनों को नोटिस पहुंच जाना चाहिए. यह भी सुझाव दिया कि मामले को विंटर ब्रेक के दौरान कोर्ट की वैकेशन बेंच के समक्ष रखा जाए. लेकिन अगली सुनवाई की अभी तक कोई तारीख नहीं दी गई है.

चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि विरोध प्रदर्शन तब तक संवैधानिक है, जब तक यह किसी की जिंदगी या संपत्ति को नुकसान न पहुंचाए. केन्द्र और किसानों को बात करनी चाहिए. हम एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति के बारे में सोच रहे हैं. इससे पहले दोनों पक्ष अपनी बात रख सकते हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि स्वतंत्र समिति में पी साईंनाथ, भारतीय किसान यूनियन और अन्य लोग सदस्य बनाए जा सकते हैं. समिति जो सुझाव देगी, उसका पालन किया जाना चाहिए. इस बीच प्रदर्शन जारी रह सकता है. पंजाब सरकार के प्रतिनिधि वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि राज्य को कोर्ट के इस सुझाव पर कोई आपत्ति नहीं है कि कुछ लोगों का समूह किसानों और केन्द्र के बीच बातचीत कराए. यह किसानों और सरकार का फैसला है कि कौन समिति में होगा.

शीर्ष अदालत ने केन्द्र से कानूनों को होल्ड पर रखने की संभावना तलाशने को भी कहा है. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि क्या सरकार किसानों से बातचीत के दौरान कृषि कानूनों को होल्ड करने को तैयार है? अटार्नी जनरल ने कहा कि वो सरकार से इसपर निर्देश लेंगे.

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वहीं किसान आंदोलन को लेकर जनहित याचिका पर सुनवाई गुरुवार को टल गई क्योंकि चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि कोर्ट किसान पक्षों को सुने बिना कोई फैसला नहीं सुना सकता है. इस मामले में पहले किसान पक्ष को पक्षकार बनाया जाएगा और फिर ही कोई सुनवाई हो सकती है. इस मामले में किसान संगठनों और संबंधित राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली को नोटिस देने की बात कही गई थी, ताकि एक पक्षकार के रूप में वे सुनवाई में शामिल हों. लेकिन आज गुरुवार को सुनवाई के दौरान किसान संगठनों की तरफ से कोर्ट में कोई नहीं आया ही नहीं था. किसान यूनियन के नेताओं का कहना हैं कि उन्हें कोर्ट की तरफ से कोई नोटिस ही नहीं मिला है. जब उन्हें नोटिस मिलेगा तब वे कोर्ट में भी जाएंगे और अपने मसले को लड़ेंगे. 

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